Monday, April 20, 2009

कीमत है कम

बाजार है बड़ा-मगर कीमत नहीं है
खूबसूरत मॉल है सुन्दर सी शॉपी है
मगर कीमत है कम

छोटी-छोटी कीमत पे बिकता है सब
कला भी है यहां मगर कीमत है कम

कीमत के टैग पे जैसे टंगा है सब
धीरे-धीरे ही सही, बिकता है सब

मैंने भी देखी दुनिया, मैं भी हूं यहीं का
मैंने भी खोला मॉल, मेरे अपने दिल का

लोग आए बहुत-दुनिया के दिलेर बनकर
कोई चैक लाया-हाथों से ख्याति लिखकर
कोई आया मॉल में, रुपयों का रूमाल रखकर
कोई आया यूं ही, जेबों में जिज्ञासा लेकर

मेरे मॉल में है सबका स्वागत
मेरे मॉल में है सबकी आगत
लोग हंसते हैं अपने स्वगत
कुछ लोग यहां हैं बड़े बेगत


मेरे सीने की जागीर मेरे दिल का मॉल है
द्वार पर शहरियों का अजीब हाल है
मॉल में हर तरफ मुहब्बत का जाल है
मॉल में एक से बढ़कर एक सामान है

प्यार की मूरत है, लौंडी खूबसूरत है
कर ले कोई मैरिज, खुली सूरत है


सोच में बैठे हैं सब सर माथे को लिए
मैंनेजमैंट की डिग्री में कहीं ये व्यापार नहीं
व्यापार की दुनिया में ये कैसा व्यापार है
माल है और सजा है सब
बिकने की शर्त पे रख है सब

मगर लोगों का कैश है रखा है सब
न चलता है न फु दकता है
कुछ तो मायूस हो लौट गए
कुछ जिद्दी हैं अहंकारी डटे हैं

इस दुनिया से बाहर रखा क्या है
कहते हैं माल कुछ लेके जाएंगे यहां से
ये कौन समझाए उनको
इस माल में चलता नहीं डालर

इस माल में चलते हैं वे सिक्के
जिनपे कीमत भी खुद खोदना है
न सरकार है न टैक्स है यहां
बस कीमत थोड़ी देना है यहां
मेरे सीने की जागीर पर खुला दिल का माल है
यहां चलता है सिक्का मगर किसी और का नहीं

रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
आपके सुझावों और कविता में प्रयोग, बिम्ब, शीर्षक आदि के सुधार के लिए विचार और सलाह आमंत्रित है।

10 comments:

विजय गौड़ said...

वाह रवीन्द्र जी ब्लाग में देखकर तो अच्छा लगा मित्र। मेरी शुभकामनाएं। आपकी रचनाएं यहां भी पढने को मिलेंगी अब तो। इंतजार बना रहेगा। चिट्ठा जगत के मार्फ़त हुई यह भेंट अनूठी है।

Yogendramani said...

अच्छा लिखा है।वधाई एवं स्वागत...।

ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है,लेखन के लिए शुभकामनाएं ..............

आलोक सिंह said...

बहुत सुन्दर रचना
मॉल में हर तरफ मुहब्बत का जाल है!
मॉल में एक से बढ़कर एक सामान है!!
आपकी इस रचना को हमारा टिप्पणी द्वारा सम्मान है !
आप लिखते रहिये , ये रचनाये हमारे लिए ज्ञान है !!

रावेंद्रकुमार रवि said...

You are a Hindi Kavi.
बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा यह पढ़कर!

अंतरजाल की हिंदी-दुनिया में आपका स्वागत है!

अनुरोध है कि ब्लॉग का शीर्षक आदि तुरंत हिंदी से विस्थापित कर दीजिए!

शब्द पुष्टिकरण भी हटा दीजिए, ताकि टिप्पणी करने में आसानी हो जाए!

dhananjay mandal said...

वाह रवीन्द्र जी आप तो शब्दो कि के "माल" मे मालामाल है।

रचना गौड़ ’भारती’ said...

बहुत बड़िया! अच्छा लिखा है आपने......
शुभकानाएँ.......

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

narayan... narayan... narayan

shama said...

Bohot nayab mall hai...!
Anek shubhkamnayen
shama

Sanjay Grover said...

हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं ..........
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूंऽऽऽऽऽऽऽऽ

ये मेरे ख्वाब की दुनिया नहीं सही, लेकिन
अब आ गया हूं तो दो दिन क़याम करता चलूं
-(बकौल मूल शायर)